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परिचय


जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट युग संस्थापक मानवधर्मसूत्र के प्रवर्तक महान् कर्मयोगी आदिनाथ ऋषभदेव, चक्रवती भरत एवं शक्तिशाली जिनशासन (प्रगतिशील शासन) के शासनाध्यक्ष पाश्र्व वीरभट्ट (जिन संस्कृति के 23 वें तीर्थंकर) के सिद्धान्तों पर आधारित एक देशभक्त क्रान्तिकारी संगठन है। जिसका लक्ष्य इन महापुरूषों के द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक गणतान्त्रिक सामाजिक व्यवस्था के जरिये भारत में राष्ट्रीय चरित्र से ओतप्रोत वर्गविहीन, शोषण विहीन समाजपरक गणतान्त्रिक व्यवस्था कायम करना है।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त को उसकी पूर्ण व्यवहारिकता के साथ स्वीकारता है।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट युग संस्थापक महान् कर्मयोगी आदिनाथ ऋषभदेव, चक्रवती भरत एवं जिनशासनाध्यक्ष पाश्र्व वीरभट्ट की क्रान्तिकारी समाजोत्थानपरक शिक्षाओं और उनके मार्गदर्शक तत्वों के प्रति पूर्ण आस्थावान हैं और उनके द्वारा प्रतिपादित चार मूल सिद्धान्तों सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना) व अपरिग्रह (संचय/जमाखोरी न करना) के अनुकूल भारत में क्रान्तिकारी वैज्ञानिक समाजवादी गणतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना करने के लिये कृत संकल्प है।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट आदिनाथ ऋषभदेव, चक्रवती भरत एवं जिनशासनाध्यक्ष पाश्र्व वीरभट्ट के मार्गदर्शक नियमों, जिनके जरिये भारत सहित पूरे विश्व में वर्ग रहित समाज की स्थापना क्रान्तिकारी वैज्ञानिक गणतान्त्रिक समाजवाद के जरिये हुई, के सार्वभौम सत्य को अक्षुण्ण रखने का दायित्व भी निभायेगा।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट मानव संस्कृति के इन निर्माताओं के क्रान्तिकारी नेतृत्व में स्थापित वर्गविहीन, शोषणविहीन, देशभक्ति पूर्ण क्रान्तिकारी वैज्ञानिक समाजपरक गणतान्त्रिक जिन शासन (प्रगतिशील शासन) व्यवस्था की प्रेरणा से जन्मा है, इस लिये वह इसकी जुझारू प्रवृतियों खासकर वर्गविहीन शोषण विहीन विधाओं और शैलियों से प्रेरित है और उसके बहुमूल्य अधिकार को अक्षुण्ण रखने के लिये संकल्पित है।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट अपने उददेश्य की प्राप्ति के लिये विश्व के सभी महापुरूषों की शिक्षाओं और अनुभवों से प्रेरण लेगा। फ़्रण्ट मानव समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन क्रम में जुटे महापुरूषों, क्रान्तिकारी चिन्तकों के विचारों एवं कार्यशैलियों से शिक्षा व अनुभव ग्रहण करेगा। ताकि भारत में, परिस्थितियों व वातावरण में सामजस्य बैठाकर, देशभक्तिपूर्ण वैज्ञानिक समाजपरक गणतान्त्रिक जिनशासन (प्रगतिशील शासन) की पुर्नरचना व क्रान्तिकारी भारत के पुर्ननिर्माण के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट भारत के वर्गविहीन, शोषणविहीन स्वरूप को पुर्नस्थापित करने के लिये जिनशासन के सार्वभोम सत्य को अपनायेगा।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट अपनी राजनैतिक शाखा व वर्ग संगठनों के सदस्यों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को समयबद्ध तरीके से संचालित करेगा।जैन यूनाईटेड लिबरेशन फ़्रण्ट द्वारा जारी !

संघी धन्नासेठ बर्बाद करने में जुटे जैन आचार्यों एवं धर्माचार्यों की अन्तिम विश्रामस्थली को !


गलता तीर्थ के पास स्थित श्री जैन श्वेताम्बर मोहनबाडी में पांच सितारा होटल की सुविधायुक्त डीलक्स सूटों से सम्पन्न धर्मशाला बनाने और कार पार्किंग व अन्य विलासितापूर्ण कार्यों के लिये प्राणप्रतिष्ठा के साथ समाधि स्थलों पर स्थापित अनन्त में विलीन आचार्यों, साधु-साध्वियों व यतियों की मूर्तियों और चरणों तथा उनकी छतरियों को श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ पर कब्जा जमाये बैठे धन्ना सेठों ने गुपचुप में हटवा कर वहां समतल मैदान बना दिया हैँ यही नहीं इन चरणों और मूर्तियों में से कुछ को आनन-फानन में एक साध्वी जी के समाधी स्थल में बनायी गई ताखों में अपमान जनक तरीके से सीमेंट से जड दिया गया है। वहीं बाकी बचे चरणों/मूर्तियों में से कुछ को खुर्दबुर्द कर दिया गया हैँ और बाकी को खुर्दबुर्द किया जा रहा है।

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अपभ्रंश नाम "मोहनबाडी" जिस का वास्तविक नाम "मौन वाडी" है, की यह जमीन रियासत के वक्त में समाज को लगान माफी के साथ रियासत के शासकों द्वारा सर्व श्वेताम्बर समाज के आचार्यों, यतियों, साधु-साध्वियों के अन्तिम संस्कार एवं समाधि स्थल निर्माण एवं धार्मिक उपासना स्थल बनाने के लिये निशुल्क दी गई थी। इस स्थल को "मौन वाडी" का नाम इस लिये दिया गया था कि जैन समाज के परम पूज्यों को रमणीक बाडी (व्यवस्थित बगीचे) में समाधी स्थल पर मौन साधना के साथ श्रावक अपनी सादर श्रद्धांजली अर्पित कर सकें। रियासत के तत्कालीन शासकों के आदेश और समग्र ओसवाल समाज, बिरादरी ओसवाल की पंचायत, श्री ओसवाल पंचायत जयपुर द्वारा आपसी सहमति से अनन्त में विलीन आदरणीय आचार्यों, यतियों, साधु-साध्वियों के अन्तिम संस्कार के साथ-साथ उसी स्थल पर समाधि निर्माण करवाया जाता रहा है। यह कार्य ०१ सितम्बर, १९४२ से पूर्व बिरादरी ओसवालान के पंचों द्वारा एवं इसके बाद श्री ओसवाल पंचायत जयपुर के पंचों की देखरेख में करवाया जाता रहा है। इसही पंचायत ने खरतरगच्छ संघ के गठन से पूर्व "मौन बाडी" की सार सम्भाल एवं इस पावन स्थल और उस में स्थित बगीचों की देखभाल एवं रखरखाव की जुम्मेदारी निभाई। इस हेतु २४ जनवरी, १९४३ को लागू बिरादरी ओसवाल के महजरनामा में उल्लेखित तरीके से समाज के प्रत्येक परिवार को अपने कर्तव्य निर्वहन के तहत आर्थिक सामाजिक दायीत्व निभाने के स्पष्ट आदेश हैं।

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यह क्रम देश की आजादी के बाद और रियासतों के राजस्थान में विलीनीकरण के बाद भी जारी रहा। तत्पश्चात बदले सामाजिक परिपेक्ष में "मौन वाडी" की व्यवस्था की जुम्मेदारी श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ को मिली। हालांकि यह सम्पत्ति सम्पूर्ण ओसवाल समाज की है तथा इसे न तो बेचा जा सकता है, न ही स्थानान्तरित किया जा सकता है। चूंकि यह समग्र जैन समाज के आचार्यों, यतियों, साधु-साध्वियों के निधन के बाद अन्तिम संस्कार स्थल है, अत: इसमें धर्मशाला, रात्रि विश्राम स्थल अथवा किसी भी तरह के विलासितापूर्ण निर्माण नहीं करवाये जा सकते हैं। यह जैन संस्कृति के धर्म ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट है और ऐसा निमार्ण कानूनन गैर कानूनी ! धर्म शब्द की आड लेकर तथाकथित धर्म के ठेकेदार "मौन बाडी" को उजाडने पर तुले हैं। जयपुर के ही धन्नासेठ कुशलचंद गोलेछा की अगुआई में धार्मिक ग्रथों और कानून का गम्भीर उलंघन कर "मौन बाडी" में जैनी धर्मशाला बनाई जा रही हैं। इस धर्मशाला में पंचतारा होटल जैसी सारी सुविधायें उपलब्ध करवाई जायेंगी और ट्यूरिस्टों से मोटी रकम वसूल कर पंचतारा सुविधायें उपलब्ध करवायी जायेंगी।

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यही नहीं इन धन्नासेठों का आगे इरादा मौन बाडी की आगे बची हुई जमीन पर सीमेंट कंकरीट की जंगी इमारत खडी करने का भी है ताकि मोटी कमाई हो सके। हालात ये हैं कि करीब डेढ सौ साल से ज्यादा पुरानी एवं हेरीटेज श्रेणी में आनेवाली निर्वाण-समाधी स्थली मौन वाडी में पिछले लम्बे अर्से से जीर्णोधार कार्य नहीं करवाया गया है। मौन बाडी की पुरानी इमारतें जिनमें मंदिर, समाधी स्थल की मूर्तियां एवं चरण स्थापित हैं की सारी फर्शें, भवन दरवाजे, खिडकियां जीर्णोधार का इन्तजार कर रही हैं, लेकिन ये धन्नासेठ इनका जीर्णोंधार इस लिये नहीं करवा रहे हैं कि इन का सपना इस पुरा सम्पदा को नष्ट कर नई अट्टालिका खडी करने का है।
समाज के आगेवान बतायें कि उन के कितने शमशानों में पांचतारा धर्मशालाऐं बनी है और उनमें कितने यात्री ठहरते हैं। अगर नहीं तो क्यों ? साथ ही यह भी बतायें कि समाज के आचार्यों एवं अन्य पूजनीयों के अन्तिम संस्कार स्थल एवं समाधी स्थलों पर क्यों पंचतारा धर्मशाला बनाई जा रही है। क्या यह जैन संस्कृति, धर्म एवं सामाजिक मार्यादाओं का उलंघन व अपमान नहीं है ?
धन्नासेठों से हम यही कह सकते हैं कि जैन संस्कृति और उसकी मर्यादाओं का अपमान करना तत्काल बंद करो और मौन बाडी के अन्तिम संस्कार-समाधी स्थल स्वरूप को मत बदलो। चाहो तो अपने श्मसानों में धर्मशाला-होटल बनवालो ! आप भी रहो और अपने मेहमानों को भी रखो ! पूजनीयों के समाधी स्थलों को तो बक्क्षो धन्नासेठों !
ऑब्जेक्ट साप्ताहिक जयपुर, सोमवार 27 अप्रेल, 2009

मुनि कान्तिसागर जी के चरण स्थापित करने का वादा !

नाकोडा तीर्थ संस्थापक व प्रतिष्ठापक खरतरगच्छाचार्य श्री कीर्तिसूरि की परम्परा में आचार्य जिन कृष्णचन्द्ररसूरि के शिष्य उपाध्याय श्री सुखसागर जी के लद्यु शिष्य एवं जैन संस्कृति के विद्वान महान पुरातत्ववेत्ता एवं भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित व प्रसिद्ध ग्रन्थों खण्डहरों का वैभव तथा खोज की पगडण्डियां सहित धातु प्रतिमा लेख, सईकी, एकलिंग जी का इतिहास, शत्रुंजय तीर्थ व अन्य सैंकडों प्रकाशित व अप्रकाशित ग्रंथों, रचनाओं के रचनाकार परम आदरणीय मुनि कान्तिसागर जी के मोहनबाडी स्थित समाधि स्थल, जिसे अत्यन्त गैर जुम्मेदारान तरीके से विलोपित करने की कुचेष्ठा की गई थी और श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की साधारण सभा में इसके पुन: निर्माण के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्णय भी हुआ उस परिपेक्ष्य में संघमंत्री नवरत्नमल श्रीश्रीमाल ने परम आदरणीय मुनि कान्तिसागर जी के चरण मोहनवाडी में स्थापित करने के लिये स्पष्ट आश्वासन दिनांक 13 अप्रेल, 2009 को संघ कार्यालय में ऑब्जेक्ट साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक हीराचंद जैन को दिया।
उल्लेखनिय है कि इस सम्बन्ध में तत्कालीन संघमंत्री स्वर्गीय उत्तमचंद बडेर के संघमंत्रित्व काल की अन्तिम साधारण सभा में हीराचंद जैन द्वारा प्रस्ताव रखने के तत्काल बाद स्वर्गीय श्री उत्तमचंद बडेर ने स्पष्ट घोषणा की थी कि परम आदरणीय कान्तिसागर जी के क्षतिग्रस्त समाधि स्थल का निर्माण कराया जायेगा। स्थल का चयन श्री हीराचंद जैन (बुरड जी) से विचार विमर्श कर तैय कर लिया जायेगा। साधारण सभा में अध्यक्ष श्रीमती जतन कंवर गोलेछा, श्री विमलचंद सुराना, श्री उत्तमचंद बडेर (अब स्वर्गीय) सहित संघ की कार्यकारिणी के अधिकांश पदाधिकारी एवं सदस्य मौजूद थे।
अगर पूंजीपतियों में भुलक्कडपन हो तो हम उन्हें पुन: यह भी याद दिलादें कि इसही मुद्दे पर इसके पहिले श्री विमलचंद सुराना के आग्रह पर उनके कार्यालय में ही एक मीटिंग हुई थी, जिसमें स्वंय श्री विमलचंद सुराना, श्री उत्तमचंद बडेर (अब स्वर्गीय) मौजूद थे और श्री हीराचंद जैन को विशेष रूप से बुलाया गया था। अन्य कुछ महानुभव भी इस बैठक में मौजूद थे। इस मीटिंग में भी परम आदरणीय मुनि श्री कान्तिसागर जी के समाधि स्थल के निर्माण पर स्पष्ट सहमति हुई थी। स्वर्गीय श्री उत्तमचंद बडेर सहित तत्कालीन कार्यकारिणी के कई पदाधिकारियों ने मौके पर जाकर परम आदरणीय मुनि कान्तिसागर जी के समाधि स्थल की दुर्दशा स्वंय देखी थी और तत्काल संघ की गलतियों को दुरूस्त करने का आश्वासन दिया था। लेकिन श्री विमलचंद सुराना व कुछ अन्य धन्नासेठों के दबाव में आकर समाधि स्थल का निर्माण नहीं करवाया गया जबकि धर्मशाला निर्माण एवं अन्य अप्रासंगिक कार्य करवाये गये एवं करवाये जा रहे हैं।
समाज के हर सदस्य को हार्दिक मानवीय पीडा से त्रस्त करने वाले, महान विद्वान प्रखर वक्ता जैन संस्कृति के पुरोधा, वरिष्ठ पुरातत्ववेत्ता परम आदरणीय मुनि कान्तिसागर जी के समाधि स्थल निर्माण के मसले में अब पुन: संघमंत्री श्री नवरत्नमल श्रीश्रीमाल ने वादा किया है कि वे चरण स्थापित करवायेंगे। लेकिन श्रीमती जतन कंवर गोलेछा की संघ अध्यक्षता कि आड में अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरा करने में जुटे पूंजीपतियों और पूंजीपतियों के पिछलग्गुओं को अब साफ-साफ समझ लेना चाहिये कि संघमंत्री श्री नवरत्नमल श्रीश्रीमाल के स्पष्ट वादे के मुताबिक अगर परम आदरणीय कान्तिसागर जी के चरण स्थापना में किसी भी पूंजीपति या उसके पिछलग्गू ने अडंगा डालने की कोशिश की तो इन पूंजीपतियों और पूंजीपतियों के पिछलग्गुओं को साफ-साफ यह भी समझ में आजाना चाहिये कि पिछले दरवाजे से श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ पर काबिज हो कर उसे अपनी जागीर बनाने वालों को आमजन सख्ती से जवाब देना भी जानता है। आम श्रद्धालु को कृपया अपनी हरकतों से इतना विचलित मत करना कि वे अपना धैर्य खो दें और संघर्ष के पथ पर अग्रसर होने के लिये मजबूत हो जायें ! आगेवान अपने सामाजिक दायीत्व को गम्भीरता से समझें और गैर जुम्मेदारान हरकतों से श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ को संघर्ष का अखाडा न बनायें तो अच्छा रहेगा और इस ही में समाज की बरकत नीहित है और उनकी स्वंय की भलाई भी !
ऑब्जेक्ट साप्ताहिक जयपुर, सोमवार 20 अप्रेल, 2009
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